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Welcome Shri Balaji Gaushala Sansthan, Salasar (Churu) Rajasthan

स्थापना एवं सहयोग:
श्री सालासर बालाजी मंदिर से एक किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 65 सुजानगढ़ रोड़ पर श्री बालाजी गोशाला संस्थान स्थित है। 23 जुलाई 1998 को इस गोशाला की विधि - विधान पूर्वक स्थापना हुई। स्थापना काल से उत्तरोत्तर विकासेन्मुख गोशाला को राजस्थान गो सेवा आयोग द्वारा बीकानेर संभाग की आदर्श गोशाला का दर्जा प्राप्त हुआ।
श्री बालाजी गोशाला संस्थान के संचालन के लिए सक्रिय एवं प्रबुद्ध लोगों की प्रबन्ध कार्य कारणी बनाई जाती है जो अपने कर्त्तव्यों का दायित्व निर्वहन करती है। श्री बालाजी मन्दिर, श्री हनुमान सेवा समिति, ग्राम पंचायत, ग्रामवासियों, पुजारी परिवार तथा धर्मानुरागी दान-दाताओं का अद्वितीय सहयोग प्राप्त है।

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श्री कृष्ण गोपाल मन्दिर:
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित मानस 1/192 के अनुसार गो ब्रांह्मण तथा धर्म की रक्षा के लिये भगवान ने भुतल पर अवतार लिया: विप्र धेतु सुर सन्त हित लीन्ह मनुज अवतारनिज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।
भगवान कृष्ण ने जहाँ एक ओर अपनी बाल क्रिड़ाओं से गोपालन का संदेश दिया वही दूसरी ओर पंच गव्य से स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति एवं मोक्ष मार्ग की बात बतलायी, इसी बात को दृष्टिगत रखते हुये गोशाला परिसर में मुख्य द्वार पर ही प्रतिकात्मक रूप में श्री कृष्ण गोपाल मन्दिर स्थित है।

गोशरण गृह:
गोशाला परिसर में छोटे बड़े बीसाधिक गोशरण गृह निर्मित है जिसमें भिन्न - भिन्न आयु एवं प्रजाति वर्ग अनुसार गो वंश को आश्रय दिया जाता है। ताकि वे निर्भय होकर रह सकें। उक्त गो  शरणगृह सर्दी-गर्मी और बरसात के मौसम में अनुकूल है। इसका निर्माण विभिन्न निर्माणकर्त्ताओं द्वारा गोशाला पदाधिकारियों की प्रेरणा से होता है। बढ़ती गो वंश संख्या को दृष्टिगत रखते हुए ओर भी साधन सम्पन्न गोशरणगृह अपेक्षित है। 

नंदी गृह:
वर्तमान आठ गो वत्सगृह है, नाकारा बैलों और वृद्ध साण्डों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है ये इधर-उधर बाजारों एवम् सड़क मार्गों पर दुर्घटनाओं में वृद्धि का मुख्य कारण बन रहा है। इन्हे समिपस्त गोशालाओं में संरक्षण दिया जाना भी आवश्यक है, किन्तु पर्याप्त स्थान पर गोवत्स गृहों के अभाव में कार्य बड़ा जोखित भरा है। परिसर में पृथक - पृथक आयु वर्ग अनुसार प्रकोष्ठ होने आवश्य हैं। निर्माण हेतु विनम्र निवेदन।

चारा गृह:
वर्ष पर्यन्त गो वंश के लिए प्रयुक्त होने वाले घास एवं पोषाहार के भण्डारण हेतु बडे़ - बड़े चारा गृह निर्मित है। किन्तु पर्याप्त भण्डारण हेतु ओर चारागृहों की आवश्यकता है। निर्माण अपेक्षित।

चार दिवारी:
संस्थान के चारों ओर तथा गोशाला के कृषि स्थलों पर पूरी तरह चार दिवारी निर्मित नहीं है। इससे चोरी एवं अन्य पशुओं द्वारा फसल का नुकसान होने की संभावना रहती है। अतः पूरी सुरक्षा हेतु चार दिवारी का निर्माण अपेक्षित है। निर्माण दान-दाताओं एवं निर्माण कर्त्ताओं से अनुरोध।

गो सेवक आवास गृह:
गोशाला में कर्मियों के आवास गृह निर्मित है किन्तु गोसेवकों के लिए पर्याप्त आवास गृह नहीं होने से जहाँ एक ओर गो सेवक पूरा समय नही दे पाते वहीं दूसरी ओर अपने गांवो से आने-जाने वाले गोसेवकों का श्रम व्यर्थ जाता है। अतः पर्याप्त आवास गृह निर्माण होने अपेक्षित।

पाकशाला:
गो वंश हेतु सीरा, दलिया, चापड़, पोषाहार, बाँटा, रोटी निर्माण के लिए वृहद् पाकशाला निर्माण अपेक्षित हैं वर्तमान में निर्मित पाकशाला छोटी है अतः वृहत पाकशाला निर्माण होने से एक साथ अधिक मात्रा में आहार का निर्माण किया जा सकेगा।

निर्माण शाला:
विभिन्न प्रकार की स्वाद एवं औषध शाला के प्रथक से भवन निर्माण की अति आवश्यकता है। वर्तमान में केंचुआ खाद कम उत्पादन एवं बेचान प्रारम्भिक तौर पर हो रहा है। भवन निर्माण पश्चात् उत्पादन में वृद्धि की जा सकेगी। भव्य निर्माण शाला से जहाँ एक ओर गोवंश के गोबर, गौमूत्र, चमड़े-खुर सींग इत्यादि का सदुपयोग होगा वहीं दूसरी ओर खाद तथा दवाओं से गोशाला को आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा।

बायोगैस एवं सोलर प्लांट:
अत्यधिक विद्युत खर्च को देखते हुए गौशाला में 35 केवी का सौर ऊर्जा का प्लांट है जिससे गौशाला को विद्युत में काफी राहत मिली है फिर भी यहां एक ओर 35 केवी का पैनल लगाने की आवश्यकता है। जिससे गौशाला को विद्युत खर्च में आत्मनिर्भरता मिल सके। आधुनिक संसाधनों में गोबर गैस संयंत्र की महता अति आवश्यक है। जैसे रोटी बनाने की मशीन, दलिया भट्टी, गौवंश हेतु बनने वाले छप्पन भोग प्रसाद के पकवान एवं गौ सेवकों के भोजन बनाने हेतु गौशाला में इंधन की अत्यधिक खपत को देखते हुए दान-दाताओं से अनुरोध है कि इसमें आर्थिक सहयोग कर गौशाला के इस प्रकल्प को पूर्ण करने में सहायक बने।

जल व्यवस्था:
यहां मरू भू-भाग में जल का प्रायः अभाव रहता है, जल है भी तो लवणोदक। मीठे पानी की व्यवस्था अन्य स्थानों से टेंकर द्वारा जल के भण्डारण हेतु बड़े - बड़े कुण्ड एवं होज निर्माण कर जल पूर्ति की जाती है। भव्य आर.ओ. प्लांट भी लगाया है किन्तु वह भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। अतः एक भव्य कूप का निर्माण कर टंकी बनवायी जानी अपेक्षित है। जिसमें अधिक क्षमता का आर.ओ. लगाकर मीठा एवं शुद्ध जल गो वंश को पिलाया जा सके तथा उन्हें पानी से होने वाली बीमारियों से बचाकर पोषित किया जा सकें।
आगन्तुको एवं गौशाला कर्मियों के लिए गोशाला परिसर एवं मुख्य द्वार के निकट जल मन्दिर है तथा यथा आवश्यकतानुसार शीतल पेय जल हेतु फ्रिज रखवाने गये है। गो भक्तों से अपेक्षा की जाती है कि वे जल व्यवस्था से सम्बन्धित किसी भी प्रकल्प के बारे में गोशाला से जानकारी प्राप्त कर जलापूर्ति कर सकते है।

चिकित्सा व्यवस्था:
चमेली देवी अग्रवाल गो - चिकित्सालय गोशाला परिसर में संचालित है। जिसका लोकार्पण जूना पीठाधीश्वर आचार्य महा मण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी महाराज के हाथों से हुआ। इस साधन सम्पन्न चिकित्सालय में रोग परीक्षण एवं शल्य कर्म के साथ-साथ एम्बुलेंस की व्यवस्था भी है तथा विभाग के अन्तर्गत जनरल वार्ड (डोम) एवं कॉटेज सुविधा है। डॉक्टर्स तथा स्टॉफ क्वार्ट्रस सुविधा है। ताकि निरन्तर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो सकें।

तुलायंत्र सुविधा:
गोशाला परिसर तथा सड़क की ओर श्री सालासर बालाजी मूँदड़ा वेब्रिज (धर्मकाँटा) स्थित है जिससे न सिर्फ गोशाला अपित्तु जन सामान्य को सामान तोल सकने की सुविधा उपलब्ध है।

गो दर्शन परिक्रमा:
भारतीय संस्कृत्ति के गोपालन के साथ - साथ गो वंश के दर्शन एवं परिक्रमा का माहात्म्य बतलाया गया है। इसी को दृष्टिगत रखते हुए गोशाला के गो दर्शन परिक्रमा हेतु मार्ग निश्चय कर एक ग्रिल एवं पुल सहित सड़क का निर्माण करवाया जावेगा ताकि दर्शकों को गो दर्शन एवं परिक्रमा करने का सुअवसर प्राप्त हो सकें। अतः इसमें सहयोग सपेक्षित है।

गो पूजन स्थल:
धर्मा नुरागी गो भक्तों द्वारा किसी पर्व विशेष पर गाय का विधि - विधान पूर्वक पूजन किया जाता रहा है। इसी दृष्टि से गोशाला हृदय स्थल पर एक मनोरम गो पूजन स्थल बनाया गया है। ताकि इच्छित गो भक्त द्वारा सपरिवार कुशल पण्डितजी के सानिध्य में पूजन किया जा सकें।

तुलादान गृह:
अपने वनज बराबर तौलकर दिया जाने वाला दान तुलादान कहलाता है जिसकी हमारे देश में प्राचीन परम्परा रही है। सिक्कों एवं लड्डुओं का तुलादान आम बात है। किन्तु यहाँ खास बात यह है कि अपने वनज का धान-गुड़ इत्यादि गोवंश हेतु दान दिये जाने के लिये यहाँ तुलादान स्थल है। इच्छुक अपने वनज का दान गोशाला में प्रदान कर पुण्य के भागी बनेंगे।

दुधारू गोदान:
हालांकि गोशाला का मुख्य उद्देश्य दूध उत्पादन का न होकर निराश्रित गोवंश को आश्रय देना है। किन्तु शुद्ध दूध की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दुधारू गायों का एक पृथन प्रकोष्ठ है जिसमें अनुसन्धान कर अधिक दुग्ध उत्पादन किया जा सके। ऐसी दुधारू गायों को दान में प्राप्त किया जा कर नये प्रयोग का दुग्ध पालकों एवं कृषकों को नई दिशा प्रदान की जा सकती है।

नस्ल सुधार:
देखने में आया है कि देशी नस्ल ही सर्व श्रेष्ठ है किन्तु कुपोषण एवं रख रखाव के अभाव के कारण सबसे अधिक देशी नस्ल ही बिगड़ी है। गिर एवम् थार पारकर गो की नस्ल को सुधारने हेतु उपचारित एवं सुधरे सांड से गर्भित गाय का दूध वृद्धि हेतु ठीक माना गया है।

विश्राम स्थल:
गोशाला दर्शनार्थ आने वाले गोभक्तों के लिए यथा स्थान विश्राम स्थल बनाये जाने अपेक्षित है। जिनमें बैठकर विश्राम पूर्वक गो चिन्तन एव दर्शन कर सकें। इस समय सुरम्य एवं मनोरम वातावरण में तनाव मुक्त होकर नवीन ऊर्जा का संचार गाय माता की गोद में रखकर अनुभव किया जा सकें।

सुख सम्पन्नार्थ यज्ञ व अनुष्ठाान:
गाय में तैतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता अनुसार गाय माता की उपस्थिति में कोई भी किये गये अनुष्ठान की सफलता सुसम्पन्नता निसन्देह है। अतः अनुष्ठाान के इच्छुक गोशाला में सम्पर्क साधकर विज्ञ पण्डित जनों से गोशाला में गाय माता का आशीर्वाद पाने के निमित्त पुराणनुसार कामधेनु से मनःवांच्छित फल प्राप्ति हेतु यज्ञ अनुष्ठान करवाया जा सकता है।

वृक्षारोपण:
गोशाला परिसर के अतिरिक्त सिगडोला, सेवद बड़ी, आलसर तथा मुरड़ाकिया कृषि फार्मों में वृक्षारोपण होकर वृक्षावलियां तैयार करने की योजना है ताकि उनकी प्राकृतिक छाया में गोवंश विश्राम कर सके तथा वहाँ जल की पूर्ण व्यवस्था से क्षेत्र को हरा-भरा किया जा सके। औषधीय वृक्षों एवं पौधों से औषध निर्माणशाला का लाभान्वित किया जा सके। पर्याप्त जल व्यवस्था होने पर चौमासे के अतिरिक्त भी आठ माह घास का उत्पादन किया जाकर गोवंश को पोषित किया जा सकें।

भूदान एवं गाय गोद अभियान:
चार स्थलों पर कृषि फार्म अवस्थित है किन्तु अन्य उपजाऊ तथा अच्छे जलश्रोत वाले खेत को क्रय कर भूमिदान तथा गाय को गोद लेकर उसका भरण पोषण का आर्थिक दायित्व निर्वहन किया जा सकता हैं। इच्छुक दानदाता गोशाला पदाधिकारियों से सम्पर्क साधकर जानकारी प्राप्त करें।

गोशवदाह संस्कार यंत्र:
मृत्त गोवंश को प्रायः खुले में डाल दिये जाने से वातावरण प्रदूषित होता है जमीन में गाड देना भ्ज्ञी इतना सुरक्षित उपाय नहीं है दाह संस्कार सर्वश्रेृष्ठ माना गया है किन्तु यह अत्याधिक मंहगा पड़ता है। अतः विद्युत संचालित गोशव दाह संस्कार यंत्र लगाये जाने से जहाँ एक ओर वातावरण प्रदूषित नहीं होता वहीं दूसरी ओर तत्त्काल दाह संस्कार सम्पन्न हो जाता है।

पर्व विशेष पर आयोजन:
अपने तथा परिजनों के जन्मदिवस, विवाह वर्षगांठ अथवा अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि अवसर पर गोशाला में आयोजन करने के निमित्त गोशाला से सम्पर्क स्थापित कर पर्व मनाने का प्रावधान है।

नियमित आयोजन:
जन भावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए गोशाला में कृष्ण जन्माष्टमी, गोपाष्टमी एवं वत्स बाहरस के पर्व धूमधाम से मनाये जाते है। साथ ही प्रति अमावस्या के दिन गो भक्तों का दान के निमित तांता लगा रहता है। इसी प्रकार हमारे देश भारत के राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस तथा गणतंत्रता दिवस पर ध्वजा रोहण कर उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। गोशाला में स्थित श्री कृष्ण गोपाल मन्दिर में प्रातः सन्ध्या आरती होती है जिसमें कर्मचारियों के अतिरिक्त दर्शनार्थियों द्वारा भाग लिया जाता है।

श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन:
3 से 9 अक्टूबर 2015 को गोशाला में गो निमित्त कथा आयोजित हुई। प्रभुप्रेमी संघ द्वारा आयोजित कथा के मुख्य वक्ता जुना पीठाधीश्वर आचार्य महा मण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी महाराज थे तथा बहु संख्या में श्रोता लाभान्वित हुये।

सम्मान: 
देश व विदेश मे गौशाला को जाने माने सम्मान पत्रो मे से 25 से ज्यादा बार नवाजा गया है। जिसमे दो बार ब्रिटिश पार्लियामेंट व दो बार महामहिम राज भवन राजस्थान जयपुर के द्वारा गोपालन विभाग द्वारा बीकानेर संभाग की आदर्श गौशाला के रूप मे एवं आईएसओ द्वारा क्यूएमएस जैसे जाने-माने सम्मान पत्रों से गौशाला को सम्मानित किया गया है। जो कि सभी गौशालाओ के लिए गौरव एवं प्रेरणा का केन्द्र हैं।

सोलर एवं बायोगैस प्लांट:
अत्याधिक विद्युत खर्च को देखते हुए गौशाला मे 35 केवी का सौर ऊर्जा का प्लांट है जिससे गौशाला को विद्यु तमे काफी राहत मिली है फिर भी यहाँ एक ओर 35 केवी के पैनल लगाने की आवश्यकता है जिससे गौशाला को विद्युत खर्च मे आत्मनिर्भरता मिल सके। आघुनिक संसाधनो मे गोबर गैस संयंत्र की महता अति आवश्यक है जैसे रोटी बनाने की मशीन, दलिया भट्टी, गौवंश हेतु बनने वाले छप्पन भोग प्रसाद के पकवान एवं गौसेवको के भोजन बनाने हेतु गौशाला मे ईंधन की अत्यधिक खपत को देखते हुए दानदाताओें से अनुरोध है कि इसमे आर्थिक सहयोग कर गौशाला के इस प्रकल्प को पूर्ण करने मे सहायक बनें।
श्रीराम कथा का आयोजन:
श्री बालाजी गौशाला संस्थान के स्थापना दिवस को ‘‘रजत जयंती महोत्सव’’ के रूप मे मनाने के लिए दिनांक 18 जुलाई 2023 से 26 जुलाई 2023 तक नौ दिवसीय श्री राम कथा एवं अतिरूद्र हनुमन महायज्ञ का आयोजन रखा गया। कथा के मुख्य वक्ता पदम् विभूषण तुलसी पीठाधीश्वर रामानन्दाचार्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज है। साथ ही 18 जुलाई 2023 को श्री हनुमान जी महाराज की 51 फीट ऊँची भव्य मूर्ति का अनावरण पूज्य गुरूदेव के कर कमलों से किया गया। इसी क्रम मे 23 जुलाई 2023 को स्थापना दिवस की तिथि पर विशाल भजन संध्या का आयोजन किया गया। जिसमे देश के ख्याति नाम भजन गायक कलाकारो ने अपनी अपनी प्रस्तुतियां दी। 

छप्पन भोग प्रसाद:
गौशाला मे गौमाता को छप्पन भोग के प्रसाद को भोग जन्म् दिवस, विवाह वर्षगांठ, धार्मिक एवं सामाजिक उत्सव पर लगाया जाता है। जिसमे 56 प्रकार के भोग सुसज्जित कर गौमाता को परोसे जाते हैं। 

सी.सी.टी.वी. कैमरा:
संस्थान की कार्यस्थल की हलचल हेतु डिजिटल सुरक्षा का आयाम विशेषता लिए हुए है। लगभग 50 सी.सी.टी.वी कैमरो से प्रत्येक क्षण कार्यालयल से निगरानी कर गौशाला परिसर को सुरक्षित बनाया गया है।

पंचगव्य उत्पाद:
गौमाता के दूध, दही, घी, गौमूत्र अर्क, गोबर खाद केन्चुआ खाद, गौधूप बत्ती (जिसमे गोबर, गौमूत्र अर्क, गौघृत का समावेश है), गोनाईल, गोबर कण्डा जैसे उत्पाद शुरू कर आमजन को लाभ दिया गया और पंचगव्य भवन मे पूर्णतया स्वास्थ्यप्रदत तरीके से उक्त उत्पादों का उत्पादन कर वितरण व्यवस्था बनाई गई है। गौमूत्र अर्क से निकली खाद एवं केंचुआ खाद इस क्षेत्र मे पेड़-पौधो के लिए रामबाण कीटनाशक एवं खाद के रूप मे प्रचलित हैं।

गोबर कण्डा मशीन:
गौमाता के गोबर को शास्त्रो मे महत्वपूर्ण बताया गया है, कण्डा बनाने हेतु गोबर कण्डे का संयंत्र लगाया गया है जो बिजली संयंत्र हैं, एवं ये उपयोगी आयाम है। इनसे बने गोबर के कण्डो का उपयोग दैनिक जीवन मे हवन, धूपिया, होलिका दहन एवं धार्मिक उत्सव पर काम मे लिया जाता हैं।

पक्षी एवं उद्यान:
गौशाला परिसर मे एक मिनी जू ‘पक्षी विहार’ केन्द्र बनाया गया है जिसमे प्रकार के पशु व पक्षियों का समावेश किया गया है। दिन मे पक्षी विहार उद्यान मे खुले मे विचरण करते है एवं रात्रि विश्राम जालीदार पिंजरो मे करते है। जिसमे लव बर्ड, बत्तख, सफेद कबूतर, चिड़िया, परसीयन बिल्ली, बन्दर, सफेद चूहे, तोता, मयूर, खरगोश आदि पशु पक्षी है। इसके अलावा एक 51 फूट की ऊँचाई पर पक्षी घर बनाया गया है जिसमे लगभग हजारो की संख्या मे कबूतर आश्रय लेते हैं। पक्षी विहार के समक्ष एक सुन्दर पक्षी उद्यान विकसित किया गया है जिसमे सुसज्जित झूले, तिसल पट्टी इत्यादि लगाये गये हैं। इसी क्रम मे अन्य पक्षियों के लिए कृत्रिम चुग्गा घर एवं परीन्डे लगाये गये हैं।

हराचारा उत्पादन सयंत्र:
गौशाला परिसर मे तीन हाईड्रोपोनिक फॉडर मशीनो मे 270 ट्रे प्रति मशीन, उत्पादन क्षमता 10 किलोग्राम हरा चारा प्रति ट्रे का नियमित संचालन पौष्टिक आहार की दृष्टि से उच्च गुणवता वाला हरा चारा (ग्रीनग्रास) प्रतिदिन उत्पादन कर सभी गौवंश को दिया जाता है। प्रति मशीन से 30 ट्रे प्रतिदिन से तीनों मशीनो से कुल 9 क्विंटल हरा चारा का ज्वार प्राप्त कर गौमाता को परोसा जाता हैं।

गौ ध्वज पोल:
गौशाला परिसर मे 101 फुट ऊँचाई पर गौमाता एवं बालाजी महाराज का ध्वज लगाया गया हैं। और राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगा लहराया जाता हैं।
जल व्यवस्था:
इस क्षेत्र मे भूमि जल मे अत्यधिक खारापन है। अतः 7000 लीटर प्रति घण्टा से पीने योग्य पानी बनाने वाला भव्य आर.ओ. प्लांट लगाया गया है जिससे जल भण्डारण के टैंक से सभी खेळों मे जल की सप्लाई दी जाती है। वर्षा ऋतु मे टीन शेड से प्राप्त जल का संरक्षण हेतु 10 बड़े जल कुण्ड बनाये गये है, जो कि वर्षा जल संरक्षण मे अनूठा योगदान संस्था द्वारा पर्यावरण बचाव एवं पेय व्यवस्था मे देय है। रिजार्च का कुआ बनाकर गौशाला मे वर्षा ऋतु मे प्राप्त अतिरिक्त जल को भूमि मे प्रवेश दिलवाया जाता है जो जल संरक्षण का अनूठा प्रयास हैं।

पर्यावरण संरक्षण:
थार के इस रेगिस्तान मे पौधों की अत्यधिक कमी है एवं गौशाला संस्थान अपने परिसर एवं बाहर के क्षेत्र मे हजारों पौधों का रोपण कर पर्यावरण के क्षेत्र मे अनूठा योगदान दिया है। हर वर्ष वर्षा ऋतु मे पौधे लगाकर उनका पालन पोषण किया जा रहा है। पौधों मे गौमाता के नाम पर नन्दिनी वन का निर्माण कर पौधा रोपण का एक उदाहरण गौशाला संस्थान मे प्रस्तुत हैं। भविष्य मे सालासर को हरा भरा बनाने के लिए कई स्थानों को पौधा रोपण के लिए तार बंदी करके सुरक्षित किया गया है, जिसमे आपका सहयोग अपेक्षित हैं।

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