हमारा आदर्शोक्ति
वैदिक ऋषि एवं महर्षियों जैसे व्यास, भृगु, भरद्वाज, कश्यप, अङ्गीरस आदि और भारतीय दर्शनों के आचार्य जैसे कपिल, कणाद, जैमिनि आदि वेद के रहस्यों को ढूँढ निकाला और उनकी तपस्या की शक्ति के मदद से उन ग्रन्थों की मूल रचनाओं को सर्जन किया। धार्मिक जीवन के सात आवश्यक चरणों जैसे कि जाति, उपजाति, गोत्र, संप्रदाय, आर्षेय, पौरुषेय, सदाचार आदि के साथ वर्ण एवं आश्रम आदि वेदों में वर्णित है । परवर्त्ती काल में इन ऋषि एवं महर्षियों ने वेदों में निहित धार्मिक तथ्यों को समाज की तात्कालिक आवश्यकताओं के आधार पर विभिन्न शास्त्रों में वर्णन किया ताकि प्रत्येक जाति के लोग अपने - अपने वैदिक आधारभूत धार्मिक दायित्व को स्वधर्म मानते हुए पालन करें। ऐसे रचना की गयी प्रत्येक शास्त्र और श्रुति को “अनन्ता वै वेदाः”, “अनन्तशास्त्रम् बहुवेदितव्यम्” के रूप में वर्णन किया गया है।
ऐसे संस्कृत का एक बहुमूल्य अतीत है,जो अन्य किसी भाषा को लेकर गर्व नहीं किया जा सकता । यद्यपि सदीयों तक संस्कृत न केवल उसके काव्यों के जरीये मार्गदर्शन किया है, तथापि ज्ञान को क्रिया में परिवर्त्तन करने के लिए एक मंच प्रदान किया हैऔर यह पहलु प्राचीन भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में ज्यादातर प्रदर्शित होता दिखाई पडता है जिस के कारण लम्बे समय तक पर्याप्त रूप से आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा समझने और आरोपित करने का विशेषाधिकार के अभाव के कारण संस्कृत और अन्य भारतीय साहित्य में प्रचलित विज्ञान के विशाल संसाधन को समझा नहीं गया।
बिलम्ब ही सही, पारम्परिक संस्कृत के विद्वान तथा आधुनिक वैज्ञानिक, उभय अत्यन्त गम्भीरता पूर्वक प्राचीन भारतीय विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी का मूल रहस्य खोजने में लगे हुए हैं । परन्तु उनका उद्दयेश्य परस्पर से भिन्न है। भारत के प्राचीन गौरव और आज के परिप्रेक्ष में विज्ञान का जानकारी के वाद, इस के आगे बढते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के साथ साथ, आधुनिक वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित होंगे कि इस प्राचीन विज्ञान के‘पथभ्रष्ट’होने की क्या प्रासंगिकता और लाभ था जो उन्हे भारत की सभ्यता पेश कर सकती थी।
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय की संस्थापना के पीछे हमारा मुख्य उद्देश्य प्राक्तन भारतीय वैदिक परम्परा के आधारभूत पठन-पाठन को पुनर्जीवित कर शोध के माध्यम से नए नए वैज्ञानिक तथ्यों का उद्भावन करना है। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय अपने प्रकार का एक स्वतन्त्र विश्वविद्यालय होगा जो पुरातन तथा आधुनिक शिक्षाप्रद्धतियों के बीच सेतु कि भाँति काम करेगा। वैदिक पाठ्यक्रम के अतिरिक्त जो पाठ्यक्रम इस विश्वविद्यालय में प्रचलित होगा उनको भारतीय पारम्परिक नाम से पुकारा जाएगा (जैसा की केमिष्ट्री – रसशास्त्र के नाम से, फिजिक्स – भौतिकविज्ञान के नाम से, मेटालुर्जी – धातुविज्ञान आदि के नाम से)। यद्यपि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मानकों के आधार पर प्रत्येक विभाग में आधुनिक विषयों का संयोजन होगा तथापि उन विभाग संबन्धित भारतीय इतिहास आधारित अतिरिक्त विषयों (100 अङ्क) को पढाने की व्यवस्था की जायेगी। इस विश्वविद्यालय किसी भी भेदभाव के विना सभी विभाग के छात्रों को समान रूप से देखते हुए सभी का शैक्षणिक, दार्शनिक, मानसिक तथा शारीरिक अभिवृद्धि के प्रति तत्पर रहेगी।