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लेफ्टिनेंट जनरल सगतसिंह राठौड़ के वेबसाइट पेज में आपका स्वागत है।

Welcome Lieutenant General Sagat Singh Rathore Kusumdesar, Ratangarh (Churu) Raj.

लेफ्टिनेंट जनरल सगतसिंह राठौड़ (पदम्विभूषण एवं परम विशिष्ठ सेना मैडल से सम्मानित) के स्मारक स्थल पर उनकी मूर्ति का अनावरण ग्राम कुसुमदेसर में 24 जून, 2023 को माननीय श्री राजेन्द्रसिंह राठौड़ (नेता प्रतिपक्ष राजस्थान विधानसभा) के कर कमलों द्वारा सरपंच श्रीमती अनिता कंवर - पवनसिंह राठौड़ (ग्राम पंचायत कुसुमदेसर), स्मारक स्थल के लिए भूमिदाता श्रीमती किशनी देवी धर्मपत्नी चौथूराम मेघवाल, श्री रणविजयसिंह पुत्र सगतसिंह राठौड़, भाजपा जिलाध्यक्ष धर्मवीर पुजारी, जिला प्रमुख प्रतिनिधि रवि आर्य, रतनगढ़ विधायक अभिनेश महर्षि, रतनगढ़ प्रधान प्रतिनिधि इन्द्राज खीचड़, पंचायत समिति रतगढ़ के सरपंचगण व अन्य जनप्रतिनिधिगण, परिजनों व ग्रामीणों की उपस्थित में सम्पन्न हुआ।
 
👉 गांव कुसुमदेसर में लेफ्टिनेंट जनरल सगतसिंह राठौड़ का स्मारक स्थल बनवाने व मूूर्ति स्थापना करवाने का सम्पूर्ण कार्य श्री पवनसिंह राठौड़ पुत्र श्री उम्मेदसिंह राठौड़ द्वारा उनकी देख रेख में करवाया गया।
 
लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़
 
पिता - श्री बृजलाल सिंह राठौड 
माता - श्रीमती जादाओ कंवर 
जन्म तिथि -  14 जुलाई, 1919  
जन्म स्थान -  कुसुमदेसर
विवाह तिथि -  27 जनवरी, 1947
पत्नी - श्रीमती कमला कंवर 
निधन - 26 सितम्बर, 2001
 
संतान - 
 
👉 पुत्र -  रणविजय
👉 पुत्र -  दिग्विजय
👉 पुत्र -  वीरविजय
👉 पुत्र -  चंद्रविजय
 
शिक्षा -   
 
👉 स्नात्तक.
 
व्यवसाय -
 
👉 इण्डियन आर्मी (देश सेवा) 
 
 
लेफ्टिनेंट जनरल सगतसिंह राठौड़

👉 दुनिया मे कुछ लोग नेतृत्व करने के लिए ही पैदा होते है, इन जन्मजात नेताओं में से परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करते हुए एक महानायक की तरह सामने आना किसी बड़े भाग्यवान पुरूष के लिए ही संभव होता है। भाग्य को अपने कर्मो द्वारा रेखाकिंत करने वाले व्यक्ति को यदि हम एक नाम देना चाहे तो वो नाम लेफ्टिनेंट जनरल सगतसिंह।
 
👉 बीकानेर रियासत की रतनगढ़ तहसील के एक छोटे से गांव कुसुमदेसर मे जन्में सगतसिंह ने अपना सैन्य जीवन बीकानेर के गंगा रिसाला से शुरू किया था। गंगा रिसाला सादुल लाइट इन्फेंट्री मे तब्दील होता है और फिर भारतीय सेना मे शामिल हो जाता है। इस प्रकार सगतसिंह ने अनेकानेक स्थानों पर सैन्य अधिकारी के रूप मे अपनी सेवाऐं दी एवं अपनी सैन्य सेवाओं से लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत हुए।
 
👉 सगतसिंह को तीन-तीन देशों के साथ युद्व करने का मौका मिला और इन तीनों देशों के साथ युद्व मे विजय प्राप्त की। हाईफा मे स्टाफ कोर्स के लिए सगतसिंह को चुना गया, वे एकमात्र भारतीय अधिकारी हैं जिन्हें दो बार स्टाफ कोर्स करने का मौका मिला। सगतसिंह मे परिस्थितियों को समझने और तुरन्त निर्णय लेने की अद्वितीय क्षमता थी। सगतसिंह व्यक्तिगत साहस, सहनशक्ति, दुरदर्शिता मे इतने अद्भूत थे कि उन जैसा भारतीय सेना मे कोई कभी नही रहा।
 
👉 द्वितीय विश्वयुद्व के दौरान सगतसिंह ने सैकेण्ड लेफ्टिनेंट के रूप मे गंगा रिसाला मे कमीशन अधिकारी के रूप मे सेवाऐं दी तथा अद्वितीय शौर्य का प्रदर्शन किया। सगतसिंह को लेफ्टिनेंट के रूप मे एक नई यूनिट मे स्थानान्तरित करके वहां से बसरा भेजा गया। 

👉 सगतसिंह ने 27 जनवरी 1947 को कमला कुमारी से शादी की, कमला जम्मू-कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश रछपाल सिंह की बेटी थीं। उनके चार बेटे थे, जिनमें से दो सेना में शामिल हो गए। उनके सबसे बड़े बेटे, रणविजय का जन्म फरवरी 1949 में हुआ था। उन्हें पहली बटालियन, गढ़वाल राइफल्स (1 GARH RIF) में नियुक्त किया गया था, जिसे बाद में मैकेनाइज्ड किया गया और 6वीं बटालियन, मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट (6 डम्ब्भ्) के रूप में फिर से नामित किया गया। वह कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हुए। दूसरे बेटे, दिग्विजय का जन्म अक्टूबर 1950 में हुआ था और उन्हें तीसरी गोरखा राइफल्स (2/3 जीआर) की दूसरी बटालियन में नियुक्त किया गया था, जिस बटालियन की कमान उनके पिता ने संभाली थी। दुर्भाग्यवश, 4 मार्च 1976 को पुंछ में बटालियन में कैप्टन के रूप में सेवा करते समय उनकी असामयिक मृत्यु हो गई, जब जिस जीप से वे यात्रा कर रहे थे वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई। उनके तीसरे बेटे, वीर विजय का जन्म अगस्त 1954 में हुआ था। उनके बड़े भाई से ठीक आठ महीने पहले दिल्ली में एक दुर्भाग्यपूर्ण स्कूटर दुर्घटना ने उनकी जान ले ली थी। आठ महीने की छोटी अवधि के भीतर अपने जीवन के शुरुआती दिनों में दो बेटों को खोना सगतसिंह और उनकी पत्नी के लिए एक भयानक क्षति थी। उनके सबसे छोटे बेटे चंद्र विजय का जन्म अप्रैल 1956 में हुआ। वह एक बिजनेस एक्जीक्यूटिव बन गया।

About Us

‘‘तीन देश, तीन युद्ध, तीन विजय’’ 
 
गोवा मुक्ति - संग्राम 

👉 15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता से स्वतंत्र हो चुका था, परन्तु अभी तक गोवा एक ऐसा स्थान था जहां पर भारतीय तिरंगे की जगह पुर्तगाली ध्वज लहरा रहा था। नवम्बर 1961 मे ब्रिगेडियर सगतसिंह को 50 पैरा बटालियन की एक डिवीजन के साथ गोवा मे तैनात किया गया। गोवा मे 17 दिसम्बर 1961 को सुबह 9ः45 पर भारतीय सैनिकों ने हमला शुरू किया। ब्रिगेडियर सगतसिंह ने 19 दिसम्बर 1961 को गोवा पर कब्जा कर लिया। मात्र तीन दिन की सैन्य कार्यवाही मे गोवा पुर्तगीज कब्जे से आजाद था और इस आजादी की नींव रखी थी सगतसिंह ने। पुर्तगाल सरकार के प्रधानमंत्री सालाजार द्वारा मैरून बैरेट वाले ब्रिगेडियर सगतसिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 10000 अमेरिकी डाॅलर का ईनाम घोषित किया गया क्योंकि गोवा की राजधानी पणजी मे प्रवेश करने वाले वे प्रथम भारतीय सैनिक थे। गोवा मुक्ति - संग्राम मे ब्रिगेडियर सगतसिंह ने अपने अद्वितीय शौर्य, प्रखरत मेधा और राजस्थान की आन बान शान का प्रतीक रही रजपूती युद्व परम्परा को प्रदर्शित करते हुए गोवा मुक्ति - संग्राम मे भाग लेते हुए गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया और भारत गणराज्य का अभिन्न अंग बनाया। 

नाथूला संघर्ष और चीन की पराजय 

👉 गोवा मुक्ति - संग्राम के बाद 17 माउंटेन डिविजन को 1967 मे नाथूला मे तैनात कर दिया गया और इसकी कमान दी गई ब्रिगेडियर सगतसिंह को। नाथूला मे पोस्टिंग के दौरान चीन के साथ रोज होने वाली झड़प से बचने के लिए सगतसिंह ने बाॅर्डर एरिया मे तारबंदी करने का निश्चय लिया। इस तारबंदी का चीनी सैनिकों द्वारा विरोधर किया गया। चीनीन सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर आॅटोमैटिक हथियारों से हमला किया गया जिसका जवाब सगतसिंह ने तात्कालिक समय मे लाइटवेट तोपो से दिया। उच्चाधिकारियों द्वारा पोस्ट छोड़ने के आदेशों के बावजूद सगतसिंह ने पोस्ट छोड़ने से मना कर दिया और तत्कालिक समय तथा युद्व की परिस्थितियों को देखते हुए न केवल तोप चलवाई बल्कि उस चीन को परास्त कर दिया जिसने 1962 के युद्व मे भारत को पराजित किया था। सगतसिंह ने उस चीन को पराजित किया था जिस चीन के बारे मे कहा जाता था कि चीन तो कभी पराजित हो ही नही सकता। इससे भारतीय सेना का मनोबल इतना बढ़ा कि भारतीय सैनिक समझने लगे कि वे चीन को भी मात दे सकते हैं। 17 माउंटेन डिवीजन के जनरल आॅफिसर आॅफ कमांडिंग जीओसी के रूप मे सगतसिंह की गई असाधारण सेवाओं के कारण आपको 26 जनवरी 1970 को विशिष्ट सेवाओं के लिए परम विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया। 

सगतसिंह और 1971 का भारत - पाक युद्व

👉 सन् 1971 एक ऐसा समय जिस समय को याद करना हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण होता है भारतीय सेना ने युद्व के सम्पूर्ण विश्व इतिहास मे सबसे बड़ा सैन्य समर्पण 1971 के युद्व मे करवाया था और इस 93000 पाकिस्तानी सैनिकों के सैन्य समर्पण की पटकथा लिखने वाले महानायको मे शामिल थे सगतसिंह।
1971 के युद्व मे सगतसिंह को पूर्वी कमान मे नियुक्त किया जाता है, सिलहट के युद्व मे विजय प्राप्त करने पर आपको मेघना नदी पार करने का आदेश प्राप्त होता है। सगतसिंह ने अपनी सूझबूझ तथा अपनी त्वरित गति की कार्यवाही से उफनती हुई मेघना नी को ने केवल पार करना बल्कि उन्होने ढाका, जो उस समय पूर्वी पाकिस्तान की राजधानी हुआ करता था, पर कब्जा कर लिया। उच्च अधिकारियों ने उन्हे ढाका खाली कर वापस लौटने का आदेश दिया तब सगतसिंह ने एक ऐतिहासिक वाक्य कहा था वह वाक्य था - ‘‘आई एम कम बैक, बट नाॅट आॅन माय फूट’’। (मैं वापस तो लौट जाऊंगा, लेकिन अपने पांव पर नहीं)। कहते हैं कि इंदिरा गांधी जैसी सख्त प्रधानमंत्री जिसे कभी किसी ने मुस्कुराते हुए नही देखा सगतसिंह की ढाका विजय पर इंदिरा गांधी ने खुल कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी और इस विजय के फलस्वरूप सगतसिंह को भारतीय जनरल पुरस्कारों मे शामिल तीसरा सर्वोच्च पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। यद्यपि जनरल नियाजी ने आत्मा समर्पण पर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीतसिंह अरोड़ा के समक्ष हथियार रखे थे प्रतीकात्मक रूप से, लेकिन इस समर्पण की पटकथा के असली लेखक, इस विजय के नायक वास्तव मे सगतसिंह थे।
 
👉 भारत माता अपने इस लाडले सपूत की बहादूरी पर गर्व करती है, भारतीय सेना अपने इस वीर लड़ाके के जज्बे से इतराती है, राजस्थान की रजपूती परम्परा अपने इस अद्वितीय योद्वारा पर गुमान करती है, शेखावाटी अंचल की रतनधरा रतनगढ़ और उनके गांव कुसुमदेसर की मिट्टी अपने उस लाडले के साहस, शौर्य और जीवटता पर मोहित हुई जाती है, इस महानायक को पाकर निहाल हुई जाती है।

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लेफ्टिनेंट जनरल सगतसिंह राठौड़ स्मारक

📍 गाँव - कुसुमदेसर, तहसील - रतनगढ़, जिला - चूरू (राजस्थान) 

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