उस मां के दर्द का कोई ओर है न कोई छोर। कलेजे की कोर को जिसने जिंदा धधकते देखा हों...! आग की लपटों में घिरे चार साल के मासूम बेटे की चीखें और चीत्कार से बदहवास उस मां ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा कर धधकती झोंपड़ी में छलांग लगा दी।
ढाई साल के मासूम को तो वह मौत के जबड़े में से छीन लाई, लेकिन चार साल के बेटे को बचाने की जंग में वह निष्ठुर मौत से हार गई। कुछ मिनटों पहले घास-फूस की जिस झोंपड़ी में खुशियां हिलोरें ले रही थी, वहां मातम पसर गया। दो बेटों के भविष्य को लेकर खम्मा ने जो सपने और अरमान संजोए थे, उन्हें दावानल बनी लपटों ने निगल लिया। कलेजे के टुकड़ों को बचाने के लिए वह खुद झुलस गई, लेकिन इससे भी बढ़कर वह दर्द बेइंतिहा साबित हुआ, जो ताजिंदगी न भूलने वाले इस ह्रदय विदारक हादसे ने उसे दिया।