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जो जैसा कर्म करता है वैसा कर्म ही भोगता है, शुभ या अशुभ जैसे ही कर्म हो।

सालासर – सृजन सेवा सदन में चमड़ियां ग्रुप पुणे के द्वारा चल रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन सोमवार को कथावाचक स्वामी श्रवणानंद सालासर – सृजन सेवा सदन में चमड़ियां ग्रुप पुणे के द्वारा चल रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन सोमवार को कथावाचक स्वामी श्रवणानंद सरस्वती महाराज ने अनेक प्रसंग सुनाए। कथावाचक ने कहा कि मानव शरीर को अभी तक करोड़ों शरीर मिल चुके हैं। शरीर तो बदल जाता है किन्तु इसमें रहने वाला जीवात्मा और अंतःकरण वही रहता है। चित्त में जन्म जन्म के संस्कार भरे हुए हैं। हमारा चित्त संसार का चिंतन करने के कारण जगत के आकार का हो गया है, इसलिए बार बार सुखी दुःखी होता रहता हैं। यदि शाश्वत सुख चाहिए तो मन के आकार को बदलना पड़ेगा। जिस प्रकार लाख को यदि पिघला दिया जाए तो फिर उसे जो चाहो वही आकार दे दिया जाता है। उसी प्रकार हमारे हृदय में जो संस्कार अंकित हैं जो अभ्यास पड़े हुए हैं, उसे एक बार भगवद् विरह में या महापुरुषों से विरह की कथा सुनने पर पिघलता दिया जाये, उसके पूर्व के सभी संस्कार कथा श्रवण से मिटा दिये जायें और फिर हृदय को परमात्म प्रेम का आकार दे दिया जाये। जो जैसा कर्म करता है वैसा कर्म ही भोगता है, शुभ या अशुभ जैसे ही कर्म हो। पाप का फल अलग भोगना पड़ता है, पुण्य का फल अलग मिलता है। पुण्य ये पाप का शमन नहीं होता है। कथावाचक ने भगवान श्रीराम के बारे में बताते हुए कहा कि जैसे ही राम ने वन के लिए चरण बढ़ाया लंका में अशगुण होने लगे, अवैध में शोक की लहर छा गई। जिनके हृदय में भगवद् चरण स्थापित हैं, उन्हें फिर विषय बाँध नहीं पाते, वह विषयलंपट नहीं होता है। जीव के जीवन में एक गड़बड़ी है, जैसे दुख समझ में आता है तो वह किसी न किसी में दुख का कारण खोज लेता है। असफलता का कारण दूसरों को समझ लेता है, किन्तु सुख का श्रेय अपने को ही देता है। जिसके जीवन में सज्जन पुरुष हैं और वे भी जो जगे हुए हैं, तो जान जाना भाग्यशाली है जगा हुआ वह है- जो संसार में तो है किंतु संसार से उसकी प्रीति नहीं है। संसार में कोई किसी को दुःख सुख देने वाला नहीं है, सब लोग अपने पूर्वजन्म के कर्मों के कारण ही सुखी दुखी होते हैं।

भगवान समता में जीते हैं उन्हें चाहे वैभव में जीना हो चाहे अभाव में जीना हो उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, यह सब तो संसारियों की दृष्टि में है। भगवान तो लीला कर रहे हैं। इस दौरान आयोजन समिति के अध्यक्ष विष्णु चमड़ियां, पिंटू चमड़ियां, पवन चमड़ियां, ओमप्रकाश चमड़ियां, कमल अग्रवाल सहित अनेक श्रोता मौजूद रहे।सरस्वती महाराज ने अनेक प्रसंग सुनाए। कथावाचक ने कहा कि मानव शरीर को अभी तक करोड़ों शरीर मिल चुके हैं। शरीर तो बदल जाता है किन्तु इसमें रहने वाला जीवात्मा और अंतःकरण वही रहता है। चित्त में जन्म जन्म के संस्कार भरे हुए हैं। हमारा चित्त संसार का चिंतन करने के कारण जगत के आकार का हो गया है, इसलिए बार बार सुखी दुःखी होता रहता हैं। यदि शाश्वत सुख चाहिए तो मन के आकार को बदलना पड़ेगा। जिस प्रकार लाख को यदि पिघला दिया जाए तो फिर उसे जो चाहो वही आकार दे दिया जाता है। उसी प्रकार हमारे हृदय में जो संस्कार अंकित हैं जो अभ्यास पड़े हुए हैं, उसे एक बार भगवद् विरह में या महापुरुषों से विरह की कथा सुनने पर पिघलता दिया जाये, उसके पूर्व के सभी संस्कार कथा श्रवण से मिटा दिये जायें और फिर हृदय को परमात्म प्रेम का आकार दे दिया जाये। जो जैसा कर्म करता है वैसा कर्म ही भोगता है, शुभ या अशुभ जैसे ही कर्म हो। पाप का फल अलग भोगना पड़ता है, पुण्य का फल अलग मिलता है। पुण्य ये पाप का शमन नहीं होता है। कथावाचक ने भगवान श्रीराम के बारे में बताते हुए कहा कि जैसे ही राम ने वन के लिए चरण बढ़ाया लंका में अशगुण होने लगे, अवैध में शोक की लहर छा गई। जिनके हृदय में भगवद् चरण स्थापित हैं, उन्हें फिर विषय बाँध नहीं पाते, वह विषयलंपट नहीं होता है। जीव के जीवन में एक गड़बड़ी है, जैसे दुख समझ में आता है तो वह किसी न किसी में दुख का कारण खोज लेता है। असफलता का कारण दूसरों को समझ लेता है, किन्तु सुख का श्रेय अपने को ही देता है। जिसके जीवन में सज्जन पुरुष हैं और वे भी जो जगे हुए हैं, तो जान जाना भाग्यशाली है जगा हुआ वह है- जो संसार में तो है किंतु संसार से उसकी प्रीति नहीं है। संसार में कोई किसी को दुःख सुख देने वाला नहीं है, सब लोग अपने पूर्वजन्म के कर्मों के कारण ही सुखी दुखी होते हैं। भगवान समता में जीते हैं उन्हें चाहे वैभव में जीना हो चाहे अभाव में जीना हो उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, यह सब तो संसारियों की दृष्टि में है। भगवान तो लीला कर रहे हैं। इस दौरान आयोजन समिति के अध्यक्ष विष्णु चमड़ियां, पिंटू चमड़ियां, पवन चमड़ियां, ओमप्रकाश चमड़ियां, कमल अग्रवाल सहित अनेक श्रोता मौजूद रहे।

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