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श्रीराम कथा मे भगवान शिव, माँ पार्वती व भगवान श्रीराम का प्रंसंग सुनाया।

सालासर - सालासर धाम मे स्थित सृजन सेवा सदन मे चमड़िया ग्रुप पुणे के द्वारा चल रही नौ दिवसी श्रीराम कथा के तीसरे दिन बुधवार को कथावाचक स्वामी श्रवणानन्द सरस्वती महाराज ने भगवान श्रीराम, भगवान शिव व माँ पार्वती का पं्रसंग सुनाया। कथावाचक ने कहा कि भगवान श्रीराम की कथा पूछने पर भगवान शिव की कथा को हम स्वीकार न पायें तो हम इसके अधिकारी ही नहीं हैं। शिव के प्रति जिसका अनुराग होता है वही राम भक्त होता है।
आज कल अनन्यता के नाम पर अध्यात्म का भी बटवारा हो रहा है। सनातन धर्मी पंचदेव उपासक हैं। गणेश, शक्ति, शिव, विष्णु, सूर्य सब की पूजा होती है। भले आराधन पद्धति अनेक हो पर हम सब एक सनातन ही हैं। अनन्य भक्त जानता है हमारा इष्ट ही सब जगह समाया हुआ है हमारे इष्ट के अतिरिक्त कोई सत्ता नहीं है। जैसे मकड़ी झाला बनाने का धागा कहीं बाहर से नहीं अपने भीतर से ही निकाल कर उसमें विहार करती है, उसे अपने में समेट लेती है वैसे ही परमात्मा भी इस संसार को अपने अंदर से ही निकालते हैं। एक ही तत्त्व सब में समाया हुआ है।


कथावाचक ने कहा कि भगवान श्रीराम ही सूत्रधार हैं। जिनके मुख से कथा सुनना चाहते हैं उनके मुख में माँ सरस्वती को भेजते हैं। भगवान शंकर सभी विद्याओं के गुरु होने पर भी अति सहज, सरल और सुंदर हैं। और शांत रस के साकर स्वरूप हैं। भगवान शिव के नेत्र विशाल कमल के समान हैं। वक्ता के नेत्र कमल के समान निर्मल हो और संसार में रहे, देखे पर उसे संसार की वासना न दिखती हो अपितु परमात्मा की उपासना दिखती हो। माँ भवानी का भगवान शिव जी पूर्ण आदर करते हैं। भारत की यह रसीली परंपरा है कि पति-पत्नी में, वक्ता-श्रोता में परस्पर आदर होना चाहिए।
माँ पार्वती के हृदय में प्रगाढ पति प्रेम और अगाध गुरु प्रेम, निष्ठा के कारण उन्हें अपना पूर्व जन्म स्मरण है। यदि आप भी अपना पूर्व जन्म जानना चाहते हो तो भगवान का खूब भजन करो। आपके हृदय में यदि जगदीश का प्रेम
रहे तो उनका और अपना स्मरण बना रहेगा। जगत् प्रेम हृदय में भरने के कारण हम अपने को ही पहचानना भूल गये हैं। शरीर की पहचान को अपना परिचय मान बैठे हैं। सुख, शान्ति, आनन्द चाहते हो तो जीवन में एक गुरु, एक मंत्र, एक इष्ट में निष्ठ होना बहुत आवश्यक है।
कथावाचक ने कहा कि मधुवन में भक्तराज श्रीध्रुव जी के दर्शन करने श्रीहरि जाते हैं वैसे ही प्रयागराज में भक्त प्रवर मुनि भरद्वाज के दर्शन करने ऋषि याज्ञवल्क्य पधारे हैं। परम संत एवं रामराज्य के स्थापक श्रीभरतजी भी इनके दर्शन करने इसी दिव्य आश्रम में आये हैं। भगवान शंकर भगवती से कहते हैं कि हमारे मनमें जो संशय हैं वह पक्षी हैं और भगवान की कथा मीठी ताली है। संसार में जितने भी आकार आप देख रहे हैं यह ईश्वर के नहीं हैं। यह भक्त के हृदय के आकार हैं।
इस दौरान आयोजन समिति के विष्णु चमड़िया, पवन चमड़िया, लक्ष्मीकान्त चमड़िया, ओमप्रकाश चमड़िया, कमल अग्रवाल सहित सैकड़ो महिला व पुरूष उपस्थित रहे।  

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